ऑटिज़म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जिसे अक्सर गलत समझा जाता है, और यह विशेष रूप से महिलाओं के मामले में ज्यादा होता है। समाज में ऑटिज़म को पुरुषों से जोड़ा गया है, लेकिन महिला मस्तिष्क के विकास और सामाजिक व्यवहार में यह विकार अलग तरीके से प्रकट होता है। अक्सर महिलाएं इसके लक्षणों को जानने या पहचानने में असफल हो जाती हैं, क्योंकि ये लक्षण समाज की अपेक्षाओं से मेल नहीं खाते।भारत में, जहां महिलाओं की सामाजिक भूमिकाएं और अपेक्षाएं बहुत स्पष्ट होती हैं, महिलाएं अपने व्यवहार और भावनाओं को छुपाने की कोशिश करती हैं, जिससे ऑटिज़म के लक्षणों की पहचान मुश्किल हो जाती है।
डॉ. आस्था के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण है कि महिलाओं में ऑटिज़म के लक्षणों को सही तरीके से पहचाना जाए और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन दिया जाए।
महिलाएं जो ऑटिज़म स्पेक्ट्रम पर होती हैं, वे सामाजिक संकेतों को समझने में कठिनाई महसूस करती हैं। उन्हें आंखों से संपर्क, सामाजिक व्यवहार और अनकहे नियमों को समझने में परेशानी हो सकती है। इन सामाजिक स्थितियों में महिलाएं खुद को असहज महसूस करती हैं, और कई बार मास्किंग (अपने लक्षणों को छुपाने) की कोशिश करती हैं ताकि वे समाज में फिट हो सकें।
ऑटिज़म से पीड़ित महिलाओं को मध्यम विद्यालय के दौरान सबसे अधिक कठिनाइयाँ होती हैं। वे अक्सर सामाजिक दबाव के कारण रिलेशनल बुलिंग का शिकार होती हैं, जो मानसिक और भावनात्मक रूप से उन्हें चोट पहुँचाती है। इसे समझना महत्वपूर्ण है कि महिलाओं के लिए ऑटिज़म के लक्षणों का सामना करना एक अलग चुनौती हो सकती है, खासकर जब वे सामाजिक अपेक्षाओं का पालन करने की कोशिश करती हैं।
भारत में महिलाओं को अधिकतर चिंता और अवसाद के निदान के साथ इलाज मिलता है, लेकिन इसके पीछे का असल कारण ऑटिज़म हो सकता है। महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निदान किया जाता है, जबकि वास्तविक कारण उनके ऑटिज़म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि सही निदान के लिए ऑटिज़म के लक्षणों को समझा जाए।
महिलाएं अपने लक्षणों को मास्किंग करने की अधिक संभावना रखती हैं, ताकि वे समाज के मानकों के अनुरूप दिखें। इसका मतलब है कि वे अपनी संवेदनाओं को दबाती हैं, अपने व्यवहार को छुपाती हैं, और सामाजिक स्थिति में फिट होने के लिए अधिक प्रयास करती हैं। हालांकि यह शारीरिक रूप से तो नज़र नहीं आता, लेकिन मानसिक रूप से यह बहुत थकाऊ हो सकता है।
ऑटिज़म से पीड़ित महिलाओं में संवेदी संवेदनशीलता अधिक होती है। वे तेज़ रोशनी, शोर, या विभिन्न बनावट से अधिक प्रभावित हो सकती हैं। यह समस्या महिलाओं को शारीरिक रूप से असहज बना सकती है और उन्हें दैनिक जीवन की गतिविधियों से दूर कर सकती है।
महिलाएं जो ऑटिज़म स्पेक्ट्रम पर होती हैं, वे भी विशेष रुचियों में गहरी दिलचस्पी रखती हैं। उदाहरण के लिए, वे पशुओं, कला, या किसी विशेष विषय में गहरी रुचि ले सकती हैं। इन रुचियों को बढ़ावा देने से उन्हें आत्मविश्वास मिलता है और वे अपनी पहचान को और मजबूत कर सकती हैं।
महिलाएं ऑटिज़म के साथ कार्यकारी कार्यों में कठिनाई महसूस करती हैं, जैसे कि समय का प्रबंधन, योजना बनाना, और संगठन। वे अपने दैनिक कार्यों को सही तरीके से व्यवस्थित करने में परेशानी महसूस कर सकती हैं, जिससे उन्हें मानसिक दबाव महसूस होता है।
ऑटिज़म वाली महिलाएं अपनी भावनाओं को गहरे रूप में अनुभव करती हैं। उनकी भावनाओं की तीव्रता सामान्य से अधिक हो सकती है, और वे अक्सर भावनात्मक अस्थिरता का सामना करती हैं। यह कभी-कभी समाज की अपेक्षाओं से मेल नहीं खाता और महिलाओं को मानसिक रूप से जटिल स्थिति में डाल सकता है।
भारत में महिलाओं में ऑटिज़म के लक्षण अक्सर अनदेखे हो जाते हैं क्योंकि उनके व्यवहार को सामाजिक अपेक्षाओं के अनुसार नहीं माना जाता। इन लक्षणों को सही तरीके से पहचानने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
डॉ. आस्था के द्वारा इस समस्या को समझने और समाधान प्रदान करने से महिलाओं को सही मार्गदर्शन और समर्थन मिलेगा।अगर आप या आपके आसपास कोई ऐसी महिला हो जो ऑटिज़म के लक्षण दिखा रही हो, तो डॉ. आस्था से मार्गदर्शन प्राप्त करना फायदेमंद हो सकता है, ताकि वे अपने जीवन को बेहतर तरीके से जी सकें।